Friday, April 11, 2025
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02 March 2025: Vaidik Panchang and Horoscope

वैदिक पंचांग (Vaidik Panchang)
🌤 दिनांक – 02 मार्च 2025
🌤 दिन – रविवार
🌤 विक्रम संवत – 2081
🌤 शक संवत -1946
🌤 अयन – उत्तरायण
🌤 ऋतु – वसंत ॠतु
🌤 मास – फाल्गुन
🌤 पक्ष – शुक्ल
🌤 तिथि – तृतीया रात्रि 09:01 तक तत्पश्चात चतुर्थी
🌤 नक्षत्र – उत्तरभाद्रपद सुबह 08:59 तक तत्पश्चात रेवती
🌤 योग – शुभ दोपहर 12:39 तक तत्पश्चात शुक्ल
🌤 राहुकाल – शाम 05:15 से शाम 06:43 तक
🌤 सूर्योदय 06:59
🌤 सूर्यास्त – 06:42
👉 दिशाशूल – पश्चिम दिशा मे
🚩 व्रत पर्व विवरण- पंचक
💥 विशेष- तृतीया को पर्वल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
💥 रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
💥 रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)
💥 रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)
💥 स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।

🌷 अशांति मिटाने के लिए 🌷
👉🏻 गाय के गोबर के कंडे लें, उसके ऊपर घी में भीगे हुए चावल डालकर जलाएं l घर में शांति आएगी व वास्तु दोष दूर होंगे l
🙏🏻

🌷 आर्थिक दरिद्रता हो तो 🌷
➡ लोटे में जल, गुड़, दूध, काले तिल मिलाकर शनिवार को पीपल के मूल में ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ जपते हुए ७ परिक्रमा करें और फिर थोड़ी देर में जप करें ‘ॐ हौं जूँ सः’ । ये माला २१ दिन करें । शनिवार को पीपल का स्पर्श करेंतो आधि-व्याधि व दरिद्रता दूर होती है ।
🙏🏻

🌷 पुराने बुखार में 🌷
🍃 तुलसी के ताजे पत्ते 6, काली मिर्च और मिश्री 10 ग्राम ये तीनों पानी के साथ पीस कर घोल बना के बीमार व्यक्ति को पिला दें। कितना भी पुराना बुखार हो, कुछ हो दिन यह प्रयोग करने से सदा के लिये मिट जायेगा।

महत्त्वपूर्ण जानकारी
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वैदिक देवताओं का वर्गीकरण तीन कोटियों में किया गया है – पृथ्वीस्थानीय, अंतरिक्ष स्थानीय और द्युस्थानीय। अग्नि, वायु और सूर्य क्रमश: इन तीन कोटियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हीं त्रिदेवों के आधार पर पहले 33 और बाद को 33 कोटि देवताओं की परिकल्पना की गई है। 33 देवताओं के नाम और रूप में ग्रंथभेद से बड़ा अंतर है। ‘शतपथ ब्राम्हण’ (4.5.7.2) में 33 देवताओं की सूची अपेक्षाकृत भिन्न है जिनमें 8 वसुओं, 11 रुद्रों, 12 आदित्यों के सिवा आकाश और पृथ्वी गिनाए गए हैं। 33 से अधिक देवताओं की कल्पना भी अति प्राचिन है। ऋग्वेद के दो मंत्रों में (3.9.9; 10. 52. 6) 3339 देवताओं का उल्लेख है। इस प्रकार यद्यपि मूलरूप में वैदिक देववाद एकेश्वरवाद पर आधारित है, किंतु बाद को विशेष गुणवाचक संज्ञाओं द्वारा इनका इस रूप में विभेदीकरण हो गया कि उन्होंने धीरे धीरे स्वतंत्र चारित्रिक स्वरूप ग्रहण कर लिया। उनका स्वरूप चरित्र में शुद्ध प्राकृतिक उपादानात्मक न रहकर धीरे धीरे लोक आस्था, मान्यता और परंपरा का आधार लेकर मानवी अथवा अतिमानवी हो गया।

वेदोत्तर काल में पौराणिक तांत्रिक साहित्य और धर्म तथा लोक धर्म का वैदिक देववाद पर इतना प्रभाव पड़ा कि वैदिक देवता परवर्ती काल में अपना स्वरूप और गुण छोड़कर लोकमानस मे सर्वथा भिन्न रूप में ही प्रतिष्ठापित हुए। परवर्ती काल में बहुत से वैदिक देवता गौण पद को प्राप्त हुए तथा नए देवस्वरूपों की कल्पनाएँ भी हुई। इस परिस्थिति से भारतीय देववाद का स्वरूप और महत्व अपेक्षाकृत अधिक व्यापक हो गया।

हिंदू धर्म में कोई भी उपासक अपनी रुचि के अनुसार अपने देवता के चुनाव के लिये स्वतंत्र था। तथापि शास्त्रों में इस बात की व्यवस्था भी बताई गई कि कार्य और उद्देश्य के अनुसार भी देवता की उपसना की जा सकती है।

इस प्रकार नृपों के देवता विष्णु और इंद्र, ब्राह्मणों के देवता अग्नि, सूर्य, ब्रह्मा, शिव निर्धारित किए गए है। एक अन्य व्यवस्था के अनुसार विष्णु देवताओं के, रुद्र ब्राह्मणों के, चंद्रमा अथवा सोम यक्षों और गंधर्वो के, सरस्वती विद्याधरों के, हरि साध्य संप्रदायवालों के, पार्वती किन्नरों के, ब्रह्मा और महादेव ऋषियों के, सूर्य, विष्णु और उमा मनुओं के, ब्रह्मा ब्रह्मचारियों के, अंबिका वैखानसों के, शिव यतियों के, गणपति या गणेश कूष्मांडों या गणों के विशेष देवता निर्धारित किए गए हैं। किंतु समान्य गृहस्थों के लिये इस प्रकार का भेदभाव नहीं लक्षित है। उनके लिये सभी देवता पूजनीय हैं। (गृहस्थानाञ्च सर्वेस्यु:)

हिंदू देवपरिवार का उद्भव ब्रह्मा से माना जाता है। त्रिदेव में ब्रह्मा प्रथम हैं। भारतीय धारणा के अनुसार ब्रह्मा ही स्त्रष्टा हैं और वे ही प्रजापति हैं।

वे एक हैं और उनकी इच्छा कि मैं बहुत हो जाऊँ (एकोऽहं बहु स्याम्‌) ही विश्व की समृद्धि का कारण है। मंडूक उपनिषद् में ब्रह्मा को देवताओं में प्रथम, विश्व का कर्ता और संरक्षक कहा गया है। कर्ता के रूप में वैदिक साहित्य में ब्रम्हा का परिचय विभिन्न नामों से दिया गया है, यथा विश्वकर्मन्‌, ब्रह्मस्वति, हिरणयगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा और ब्रह्मा। पुराणों में इन नामों के अतिरिक्त धाता, विधाता, पितामह आदि भी प्रचलित हुए। वैदिक साहित्य की अपेक्षा पौराणिक साहित्य में ब्रह्मा का महत्व गौण है। उपासना की दृष्टि से जो महत्ता विष्णु, शिव, यहाँ तक की गणपति और सूर्य को प्राप्त है, वह भी ब्रह्मा को नहीं मिला, किंतु वैदिक देवताओं में प्रजापति के रूप में ब्रह्मा सर्वमान्य हैं और इस रूप में वे आकाश और पृथ्वी को स्थापित करने वाले तथा अंतरिक्ष में व्याप्त रहते हैं। ये समस्त विश्व और समस्त प्राणियों को अपनी भुजाओं में आबद्ध किए रहते है। इस प्रकार ऋग्वेद में ब्रह्मा का अमूर्त रूप ही अथर्व मान्य है। मानवी रूप में इनकी कल्पना भी बड़ी प्राचीन है। अथर्व और बाजसनेयी संहिता में भी वे सर्वोपरि देवता के रूप में स्वीकार किए गए हैं। शतपथ ब्राह्मण (11। 1। 6। 14।) में उन्हें देवों के पिता तथा इसी ग्रंथ में अन्यत्र (2। 2। 4। 1) कहा गया है कि सृष्टि के आदि में भी ब्रह्मा का अस्तित्व था। मैत्रयणी संहिता में (4। 212।) प्रजापति के अपनी पुत्री उषस पर आसक्त होने की कथा मिलती है जो परवर्ती साहित्य में विस्तृत रूप से दुहराई गई है। इस कथा के प्रति नैतिक दृष्टिकोण के कारण परवर्ती समाज में ब्रह्मा की मान्यता घटती गई। ब्रह्मा का स्वभाव भी उनकी लोकप्रियता में बाधक हुआ। संप्रदाय देवता के रूप में वे विष्णु और शिव की तरह लोकप्रिय न हुए तथा तपस्‌ और यज्ञ के विशेष हिमायती होने के कारण भक्ति के विशेष पात्र न हो सके। साथ हीं विष्णु और शिव का विरोध करनेवाले असुर और देवों पर भी वे सहज ही अनुकंपा करते थे अतएव दोनों ही संप्रदायवालों ने इनकी उपेक्षा की है। ब्रह्मा धीरे धीरे हिंदू पुराकथा में इतना महत्वहीन हो जाते हैं कि जैसा मधु कैटभ की कथा से पता चलता है, वे अपनी ही सुरक्षा में असमर्थ सिद्ध होते हैं तथा विष्णु की कृपा की अपेक्षा करते हैं। वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदायवाले अपने आराध्य देव विष्णु और शिव को ब्रह्मा का आराध्य देव मानते हैं। इस प्रकार के दृष्टिकोण का प्रभाव भारतीय धर्म पर यह पड़ा कि उस देवता के आधार पर भारत में न तो कोई धार्मिक संप्रदाय खड़ा हो सका और न उपास्य देव के रूप में ब्रह्मा की पृथक मूर्तियाँ ही प्रचुरता से स्थापित हुई। ब्रह्मा के मंदिर बहुत ही कम मिलते हैं। शास्त्रविधान के अनुसार उपास्य देव के रूप में ब्रह्मा का पूजा केवल वैदिक ब्राह्मणों को ही करनी चाहिए।

पुराणों तथा शिल्पशास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा चतुर्मुख हैं। इनके चार हाथों में अक्षमाला, श्रुवा, पुस्तक और कमंडलु प्रदर्शित कराने का विधान है। ग्रंथभेद से ब्रह्मा के आयुधभेद भी हैं। युगभेद के अनुसार इन्हें कलि में कमलासन, द्वापर में विरंचि, त्रेता में पितामह और सतयुग में ब्रह्मा के नाम से कहा गया है। इनकी सावित्री और सरस्वती दो शक्तियाँ हैं। सावित्री का स्वरूप विधान ब्रह्मा के अनुरूप ही निश्चित किया गया है। ब्रह्मा के अष्ट प्रतिहारों को सत्य, धर्म, प्रियोद्भव, यज्ञ विजय, यज्ञभद्रक, भव और विभव के नाम से जाना जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि की स्थिति में विष्णु की ‘इच्छा’ ही प्रधान है। सृष्टि का परिपालन विष्णु अपनी शक्ति लक्ष्मी के सहयोग से करते हैं। विष्णु ‘इच्छा’ के प्रतीक हैं, लक्ष्मी ‘भूति’ और ‘क्रिया’ की। इस प्रकार इच्छा, ‘भूति’ और ‘क्रिया’ से षड्गुणों की उत्पत्ति हेती हैं। षड्गुण ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, बल, वीर्य और तेजस्‌ हैं। ये ही सृष्टि के उपादान हैं। इन्हीं में से दो दो गुणों से तीन मूर्त रूप बनते हैं जो लोक में संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हैं। वासुदेव में सभी गुण हैं। आदि वासुदेव के आधार पर गुप्तयुग में चतुर्विशति विष्णुओं की कल्पना की गई। इनके नाम क्रमश: वासुदेव, केशव, नारायण, माधव, पुरुषोत्तम, अधोक्षज, संकर्षण, गोविंद, विष्णु, मधुसुदन, अच्युत, उपेंद्र, प्रद्युम्न, त्रिविक्रम, नरसिंह, जनार्दन, वामन, श्रीधर, अनिरुद्ध, हृषीकेश, पद्मनाभ, दामोदर, हरि और कृष्ण हैं।

विष्णु के अवतार भारतीय धर्म और आस्था पर विशेष प्रभाव रखते हैं। अवतारवाद की भावना वैदिक है। ‘शतपथ’ और ‘ऐतरेय’ ब्राह्मणों में विष्णु के मत्स्य, कूर्म और वाराह अवतारों की चर्चा है। ग्रंथभेद से विष्णु के अवतारों और उनकेक्रम आदि में बड़ा अंतर है किंतु सामान्यतया अवतारों की संख्या दस मानी जाती है। मूर्तिविधान की दृष्टि से दशावतार का विवेचन करते हुए शिल्पशास्त्रों ने मत्स्य और कूर्म को यथाकृति बनाने का निर्देश किया है। नरसिंह का मुख सिंह की तरह और भयंकर दाँतों तथा भौंहों से युक्त बनाना चाहिए। वाराह वाराहमुख हैं और उनके आयुध गदा और कमल हैं। नरसिंह के भी यह आयुध हैं। वाराह के दंष्ट्राग्र पर पृथ्वी स्थित है। गुप्त युग में वाराह के इस स्वरूप का अत्यंत कलात्मक प्रदर्शन उरयगिरि गुहा (भिलसा) में किया गया है। वामन को शिखा सहित और श्याम वर्णवाला कहा गया है। उनके एक हाथ में दंड और दूसरे में जल पात्र प्रदर्शित किया जाता है वे छत्र भी धारण करते हैं। तक्षशिला से प्राप्त वामन विष्णु की एक प्रतिमा चतुर्भुज है जिनमें पद्म, शंख, चक्रश् और गदा धारण किया है। परशुराम को जटाधारी तथा बाण और परशु सहित प्रदर्शित करना चाहिए। दाशरथि राम श्याम वर्ण के हैं और धनुष बाण धारण करते है। बलराम का आयुध मूसल है। बुद्ध हिंदू शिल्पशास्त्रों के अनुसार पद्मासनस्थ हैं, काषायवस्त्र धारण करते हैं, रक्त वर्ण के तथा द्विभुज हैं और त्यक्त आभूषण हैं। कल्कि को शास्त्रों ने अश्वारूढ़ और खड्गधारी कहा है।

विष्णु के कुछ विशिष्ट स्वरूप भी हैं। जलशायी विष्णु का स्वरूप गुप्तयुग में भी विशेष मान्यता प्राप्त था। देवगढ़ के मंदिर में जलशायी विष्णु की बड़ी सुंदर प्रतिमा अंकित है। जलशायी बिष्णु को सुप्तदर्शित किया जाता है। वे दाएँ करवट लेटे दिखाए जाते हैं और बाएँ हाथ में पुष्प लिए रहते है। नाभि से एक कमल निकला होता है जिस पर ब्रह्मा आसीन होते हैं। पाँयताने उनकी शक्तियाँ श्री और ‘भूमि’ प्रदर्शित की जाती हैं तथा पार्श्व में मधुकैटभ भी प्रदर्शित किया जाता है।

चतुर्मुख प्रकार की कुछ विष्णुमूर्तियाँ, बैकुंठ, अनंत, त्रैलोक्य मोहन और विश्वमुख के नाम से जानी जाती हैं। वैकुंठ अष्ठभुज, अनंत द्वादशभुज, त्रैलोक्य मोहन, श् षोडशभुज और विश्वमुख विंशति भुज होते हैं। वैकुंठ, त्रैलोक्य मोहन और अनंत और विश्वमुख के चार मुख क्रमश: नर, नारसिंह, स्त्रीमुख और वराहमुख होते हैं। त्रैलोक्य मोहन की प्रतिमा में वराह आनन की जगह कभी कभी कपिलानन बनाया जाता है।

विष्णु का वाहन गरुड़ है और उनके अष्ट प्रतिहारों के नाम चंड, प्रचंड, जय, विजय, धाता, विधाता, भद्र और समुद्र हैं।

मूर्तिशास्त्र की दृष्टि से विष्णु और सूर्य के मूल स्वरूप में बड़ी समानता है। किंतु पंचदेवों में इनका विष्णु से पृथक्‌ स्थान है। वैदिक काल से ही सूर्य का महत्व हिंदू देववाद में स्वीकर किया गया। ई0 पू0 प्रथम शती से सूर्योपासना के प्रति निष्ठा सांप्रदायिक रूप ले बैठी। गुप्तयुग में भी सूर्य की पूजा के प्रति लोकरुचि उग्रतर होती गई। मध्यकाल में, विशेषकर बंगाल में सूर्य का विष्णु के समान ही महत्व माना गया। बौद्ध और जैन धर्म में सूर्य के प्रति उपासना का भाव व्यापक हुआ। भाजा बौद्ध गुफा में तथा अनंत (उड़ीसा) की जैन गुफा में सूर्य की प्राचीन मूर्तियाँ अंकित हैं।

प्रतिमाविधान की दृष्टि से सूर्य के स्वरूप में कई भेद हैं। कमलासन मूर्तियाँ प्राय: द्विभुज होती हैं, जिनमें श्वेत कमल होता है तथा वे सप्ताश्वरथ मे प्रदर्शित की जाती हैं। पुराणों उदीच्यवेशी सूर्य की प्रतिमा का विशेष वर्णन मिलता है, जिनमें सूर्य ईरानी देवताओं की तरह लंबा कोट और बूट भी धारण करते है। ऐसी उदीच्यवेशी सूर्यप्रतिमाएँ रथारूढ़ भी प्रदर्शित होती हैं। मथुरा कला में सूर्य का यह रूप विशेष लोकप्रिय हुआ। दाक्षिणात्य परंपरा में सूर्य लंबा कोट और बूट नहीं धारण करते। सूर्य के साथ उनकी पत्नियाँ निशभा (या छाया) तथा राज्ञी (अथवा प्रभा वा वचंसा) भी प्रदर्शित की जाती हैं। सूर्य के सात घोड़े सूर्य की सात रश्मियों के प्रतीक हैं।

सूर्य का नवग्रह में प्रथम स्थान है। शेष आठ ग्रह, सोम, कुज, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु हैं। सभी ग्रह किरीट और रत्नकुंडल धारण करते हैं। उनके वर्ण और वाहन भिन्न भिन्न हैं।

शिव का त्रिदेव में विशिष्ट स्थान है। वैदिक रुद्र का पौराणिक शिव से प्रत्यक्ष मेल तो नहीं बैठता किंतु इसके आधार पर शिवोपासना वेदोत्तर भी नहीं मानी जा सकती। सिंधुघाटी की सभ्यता में ध्यानयोगी और पशुपति शिव का आकलन हुआ है। शिव संहार के प्रतीक हैं, किंतु सांप्रादायिक भावुकता की अतिरेकता में इन्हें सृष्टि की स्थिति और स्थायित्व का भी कारण समझा जाता है। शिव के दो रूप हैं -एक सौम्य और दूसरा उग्र। सौम्य रूप में शिव गुणातीत हैं और ‘शिव’ हैं। उनका वाहन नंदी ‘धर्म’ का प्रतीक है। उग्र रूप में शिव भैरव हैं और संहार के प्रतीक हैं। दे0 ‘महादेव’।

शिव परिवार में गणेश और कार्तिकेय आते हैं। किंतु इनकी पूजा प्रधान देवों के रूप में भी होती है। दे0 ‘गणेश’तथा ‘कार्तिकेय’।

लोकदेवता के रूप में अष्ट लोकपालों की विशेष मान्यता है। इनमें अधिकांश वैदिक देवता है जो पौराणिक युग में अपना पूर्वमहत्व खोकर अष्टदिक्‌पालों की केटि में आ गए। फिर भी इनका महत्व निरंतर बना रहा। ये बौद्ध तथा जैन देवपरिवार में भी मान्यताप्राप्त हुए। इनके नाम, आयुध और वाहन निम्नतालिका से स्पष्ट किए जाते हैं:

नाम— आयुध और मुद्रा— वाहन

इंद्र— वरद, बज्र, अंकुश, कुंडी— गज

अग्नि— वरद, शक्ति, कमल, कमंडलु— मेष

यम— लेखनी, पुस्तक, कुक्कुट, दंड— महिष

नैर्भृत— खड्ग, खेटक, कर्तिका, मस्तक— श्वान

वरुण— वर, पाश, उत्पल, कुंडी— नक्र

पवन— वर, ध्वज, पताका, कमंडलु— गज अथवा नर

ईशान— वर, त्रिशुल, नाग, बीजपूरक— वृष

देवियाँ

भारतीय देवताओं की तरह देवियों की भी संख्या असंख्य है। प्राय: सभी देवताओं की शक्तियाँ उनकी पत्नियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। बहुत सी देवियों की अपनी स्वतंत्र सत्ता है और उनके आधार पर संप्रदाय भी संचालित हुए। किंतु मत्स्यपुराण में लोकदेवियों के रूप में लगभग दो सौ देवियों की सूची है। इसी प्रकार काश्यप संहिता, रेवती कल्प में भी देवियों की सूची है। मूर्तिशास्त्र की दृष्टि से देवपत्नी के रूप में देवियों का स्वरूप प्राय: उनके देवता के अनुरूप ही होता है अथवा वे अपने देवता के ही आयुध, मुद्रा और प्रतीक स्वीकार करती हैं। किंतु देवियों के कुछ विशिष्ट स्वरूप भी लोकप्रीय हैं। वैष्णवों में लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा अधिक प्रचलित है। ये क्रमश: श्री और विद्या की अधिष्ठात्री हैं। लक्ष्मी के दो स्वरूप श्री और वैष्णवी शिल्पशास्त्र में वर्णित हैं। वैष्णवी के रुप में वे चतुर्भुज हैं और अपने हाथों में विष्णु के आयुध शंख, ध्वज गदा और पद्म धारण करती हैं। महालक्ष्मी के रूप में देवी के चार हाथों में एक वरद मुद्रा में और शेष तीन में त्रिशूल, खेटक और पानपात्र बनाने का विधान है। महालक्ष्मी के रूप में देवी स्वयं स्वतंत्र सत्ता हैं, शक्ति के रूप में किसी अन्य की सहयिका नहीं श्री के रूप में लक्ष्मी कमलासना हैं और सुखसमृद्धि की प्रतीक हैं। श्री देवी प्राय: द्विभुज है और अपने हाथों में सनाल कमल धारण करती हैं। कभी कभी एक हाथ में कमल और दूसरे में बिल्व फल धारण करती हैं। श्री लक्ष्मी को दो हाथी स्नान भी कराते रहते है। श्री देवी की मूर्तियाँ बौद्ध कला में भी लोकप्रिय थीं। साँची की कला में श्री की कतिपय विशिष्ट मूर्तियाँ हैं।

सरस्वती का पूजन विद्या की अधिष्ठात्री देवी के रूप मेंश् होता है। इनकी प्रतिमा ब्रह्मा के साथ पत्नी रूप में भी बनती है और पृथक्‌ रूप में भी। सरस्वती चतुर्भुजी हैं और उनके आयुध पुस्तक, अक्षमाला, वीणा या कमंडलु हैं। एक हाथ प्राय: वरद मुद्रा में रहता है। कमंडलु का विधान ब्रह्मा की पत्नी के रूप में है किंतु पृथक्‌ प्रतिमा में सरस्वती के हाथ में वीणा ही रहती है और कभी कभी कमल रहता है। इनका वाहन हंस है। महाविद्या सरस्वती के रूप में देवी के आयुध अक्षा, अब्ज, वीणा और पुस्तक हैं। मध्यकालीन ध्यान और मूर्तिविधान में एक सरस्वती के आधार पर दश या द्वादश सरस्वतियों की कल्पना महाविद्या, महावाणी, भारती, सरस्वती, आर्या, ब्राह्मी, महाधेनु, वेदगर्भा, ईश्वरी, महलक्ष्मी, महकाली और महासरस्वती के नाम से भी की गई है।

शिव की पत्नी गौरी मूर्तिशास्त्र में अनेक नाम और आयुधों से जानी जाती हैं। द्वादश गौरी की सूची में उमा, पार्वती, गौरी, ललिता, श्रियोत्तमा, कृष्णा, हेमवती, रंभा, सावित्री, श्रीखंडा, तोतला और त्रिपुरा के नाम से प्रसिद्ध हैं।

देवियों में आदि शक्ति के रूप में कात्यायनी की बड़ी महिमा है। इन्हें चंडी, अंबिका, दुर्गा, महिषासुरमर्दिनी आदि नामों से जाना जाता है। सामान्यतया कात्यायनी देवी दशभुजी हैं अैर इनके दाहिने हाथों में त्रिशूल, खड्ग, चक्र, वाण और शक्ति तथा बाएँ हाथों में खेटक, चाप, पाश, अंकुश और घंटा है। ग्रंथभेद से कात्यायनी के आयुधभेद भी कहे गए हैं। महिषासुर मर्दिनी के रूप में कत्यायनी का स्वरूप उनके सामान्य स्वरूप से थोड़ा भिन्न हो जाता है; अर्थात्‌ सिंहारूढ़ देवी त्रिभंगमुद्रा में दैत्य का संहार करती हैं, एक पैर से उसे पदाक्रांत करती हैं और दो हाथों में शूल पकड़े हुए उसे दैत्य की छाती में चुभोती हैं। इनके आठ प्रतिहार हैं जिनके नाम बेताल, कोटर, पिंगाक्ष, भृकुटि, धुम्रक, कंकट, रक्ताक्ष और सुलोचन अथवा त्रिलोचन हैं। चामुंडा या काली क्रोध की प्रतिमूर्ति हैं। इनका रूप क्रूर है, शरीर में मांस नहीं है और मुख विकृत है। आँखें लाल और केश पीले हैं। इनका वाहन शव और वर्ण कला है। भुजंग भूषण है और वे कपाल की माला धारण करती हैं। किंतु चामुंडा के रूप में देवी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कृशोदरी हैं। मूर्तिशास्त्रीय परंपरा के अनुसार ये षोडशभुजी हैं तथा इनके आयुध त्रिशूल, खेटक, खड्ग, धनुष, अंकुश, शर, कुठार, दर्पण, घटा, शंख, वस्त्र, गदा, वज्र, दंड और मुद्गर हैं। चामुंडा के रूप में देवी का स्वरूप, जैसा उपलब्ध मूर्तियों से पता चलता है, द्विभुज और चतुर्भुज भी है।

मातृकाएँ भारतीय मूर्तिविधान और उपासना परंपरा में विशेष मान्यता रखती हैं। इनकी संख्या ग्रंथभेद से सात, आठ और सोलह तक गिनाई गई है। सामान्यतया सप्तमातृकाएँ ही विशेष मान्यता प्राप्त हैं और इनमें ब्राम्ही, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वारही, इंद्राणी और चामुंडा की गणना होती है। सप्तमातृका पट्ट में आरंभ में गणेश और अंत में वीरेश्वर या वीरभद्र भी स्थान पाते हैं। विकल्प से कभी कभी चामुंडा की जगह नारसिंही स्थान पाती हैं। किंतु अष्टमातृका पट्ट में चामुंडा और नारसिंही दोनों का हीं अंकन होता है।

🙏🏻पंचक शुरू– 27 फरवरी 2025, बृहस्पतिवार को शाम 04:37 बजे
पंचक खत्म– 3 मार्च 2025, सोमवार को सुबह 6:39 बजे

पंचक शुरू– 26 मार्च 2025, बुधवार को दोपहर 03:14 बजे
पंचक खत्म– 30 मार्च 2025, रविवार को शाम 04:35 बजे

जिनका आज जन्मदिन है उनको हार्दिक शुभकामनाएं बधाई और शुभ आशीष

दिनांक 2 को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 2 होगा। इस मूलांक को चंद्र ग्रह संचालित करता है। चंद्र ग्रह मन का कारक होता है। आप अत्यधिक भावुक होते हैं। आप स्वभाव से शंकालु भी होते हैं। दूसरों के दर्द से आप परेशान हो जाना आपकी कमजोरी है। आप मानसिक रूप से तो स्वस्थ हैं लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर हैं। चंद्र ग्रह स्त्री ग्रह माना गया है। अत: आप अत्यंत कोमल स्वभाव के हैं। आपमें अभिमान तो जरा भी नहीं होता। चंद्र के समान आपके स्वभाव में भी उतार-चढ़ाव पाया जाता है। आप अगर जल्दबाजी को त्याग दें तो आप जीवन में सफल होते हैं।

शुभ दिनांक : 2, 11, 20, 29

शुभ अंक : 2, 11, 20, 29, 56, 65, 92

शुभ वर्ष : 2027, 2029, 2036

ईष्टदेव : भगवान शिव, बटुक भैरव

शुभ रंग : सफेद, हल्का नीला, सिल्वर ग्रे

जन्मतिथि के अनुसार भविष्यफल :

किसी नवीन कार्य योजनाओं की शुरुआत करने से पहले बड़ों की सलाह लें। व्यापार-व्यवसाय की स्थिति ठीक-ठीक रहेगी। स्वास्थ्य की दृष्टि से संभल कर चलने का वक्त होगा। पारिवारिक विवाद आपसी मेलजोल से ही सुलझाएं। दखलअंदाजी ठीक नहीं रहेगी। वर्ष काफी समझदारी से चलने का रहेगा। लेखन से संबंधित मामलों में सावधानी रखना होगी। बगैर देखे किसी कागजात पर हस्ताक्षर ना करें।

🙏🏻आज का राशिफल 🙏🏻

मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज का दिन आपके लिए हानिकारक रहेगा। आप किसी भी कार्य को पूरी तरह से देखे भाले बिना ही अपना निर्णय देंगे अथवा बिना जांच पड़ताल किए उस पर कार्य आरंभ कर देंगे। इस कारण बाद में आर्थिक हानि के साथ समय भी बर्बाद होगा। कारोबारियों को आज कम समय में अथवा कम निवेश में ज्यादा लाभ कमाने के प्रलोभन मिलेंगे इनको बिना सोचे समझे ही मना कर दें यही आपके लिए हितकर रहेगा। धन की आमद ले-देकर कामचलाऊ हो ही जाएगी लेकिन मन को संतोष नहीं होगा। परिवार में आज अपने बुद्धि विवेक से तालमेल बैठाए रखेंगे। लेकिन घर के छोटे सदस्य एवं महिलाओं को परिस्थिति अनुसार ढालने में असमर्थ होंगे। संध्या के बाद परिस्थिति में धीरे-धीरे सुधार आने लगेगा फिर भी आर्थिक व्यवहार आज किसी से ना करें। रक्तचाप की शिकायत हो सकती है। वाहन आदि से भी सतर्कता बरतें।

वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन आपके लिए लाभप्रद रहेगा। आप जिस कार्य को वृथा भाग-दौड़ वाला समझेंगे वही धन लाभ कराएगा। लापरवाही स्वभाव में दिनभर बनी रहेगी जिसके चलते कुछ ना कुछ हानि अवश्य उठानी पड़ेगी। कार्यक्षेत्र पर सहकर्मी अथवा नौकरों के ऊपर अति विश्वास नुकसान करा सकता है इसका ध्यान रखें। मध्यान्ह के आसपास विचित्र स्थिति बनेगी परिजन अथवा अन्य कोई वरिष्ठ व्यक्ति जिस कार्य को करने के लिए मना करेगा आप जबरदस्ती उस कार्य को करेंगे आरंभ में विरोध भी देखना पड़ेगा लेकिन सफलता मिलने पर सभी बगलें झांकने नजर आएंगे। जीवनसाथी को आप के कारण कुछ कष्ट हो सकता है। व्यवहार कुशल रहें अन्यथा घरेलू सुख को भूल ही जाएं। आज दिन के आरंभ में ही शनि संबंधित वस्तुओं का दान करने से प्रत्येक कार्य में सफलता की संभावना बढ़ेगी। सेहत व्यसन अथवा चोट के कारण गड़बड़ हो सकती है।

मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज का दिन आपकी उम्मीद पर खरा उतरेगा। आज दिन के आरम्भ में घरेलू मामलों को लेकर लापरवाही करेंगे। लेकिन आज व्यवसायिक कार्यों में अधिक गंभीरता दिखाएंगे। कार्यक्षेत्र पर धन की आमद रुक-रुककर होती रहेगी। आज जहां से सहज काम नहीं बनेगा वहां से दंड की नीति भी अपना सकते हैं। सहकर्मी अधीनस्थों को डरा धमका कर अपना काम चलाएंगे। पारिवारिक वातावरण कुछ समय के लिए उथल पुथल होगा। किसी परिजन की अनैतिक मांग को लेकर जिद बहस हो सकती है। परिवार के बड़े बुजुर्ग कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौप कर दुविधा में डालेंगे। संध्या का समय थकान से भरा रहेगा फिर भी मनोरंजन के अवसर तलाश ले लेंगे। सर दर्द अथवा बुखार की शिकायत हो सकती है।

कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज के दिन आपमें अध्यात्म के प्रति विशेष लगाव रहेगा। मन में धर्म के गूढ विषयों को जानने की जिज्ञासा रहेगी। व्यस्तता एवं व्यवधानों के बाद भी दिन का कुछ समय धार्मिक कार्यों के साथ टोने टोटको के प्रयोग में भी देंगे। कार्यक्षेत्र पर मध्यान तक विविध उलझनों का सामना करना पड़ेगा। जिस किसी से भी सहयोग की आशा रखेंगे वही अपने निजी परेशानी बता कर पीछा छुड़ाएगा। फिर भी आज युक्ति मुक्ति लगाकर आवश्यकता अनुसार धन प्राप्त कर ही लेंगे। परिवार में अचल संपत्ति को लेकर कुछ ना कुछ परेशानी खड़ी होगी निवास स्थान में परिवर्तन के बारे में भी विचार कर सकते हैं।
विदेश अथवा अन्य लंबी दूरी की यात्रा में अक्समात बाधा आने से मन निराश होगा। संध्या का समय मानसिक बेचैनी फिर भी दिन की अपेक्षा ठीक ही रहेगा।

सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज दिन के आरंभ से ही सेहत में उतार-चढ़ाव आना शुरू हो जाएगा। इस वजह से दिनचर्या अस्त-व्यस्त ही रहेगी कार्यक्षेत्र पर जिस आशा से कार्य करेंगे उस में कुछ ना कुछ कमी रहेगी। उलझे हुए कार्यों को अपनी अथवा किसी निकटस्थ स्वजन की पद-प्रतिष्ठा का हवाला देकर पूर्ण करने का प्रयास करेंगे लेकिन इसमें भी कुछ अड़चन ही आएगी। आज केवल पैतृक कार्यों से बिना किसी झंझट के सहज लाभ कमा लेंगे। अन्य कार्यों से भी जोड़-तोड़ करने का प्रयास करेंगे लेकिन सफलता संदिग्ध ही रहेगी। कोई व्यावसायिक अथवा घरेलू कार्य से यात्रा की योजना अंत समय में निरस्त करनी पड़ सकती है। आरंभ में यह निराशा बढ़ाएगी लेकिन आज यात्रा में कुछ ना कुछ अनिष्ट होने का डर है यथासंभव टालना ही बेहतर है। घर में जीवनसाथी अथवा किसी अन्य प्रियजन को शारीरिक कष्ट पहुंच सकता है स्वयं भी जोखिम वाले कार्यों से बचें।

कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज का दिन बीते कई दिनों की तुलना में बेहतर रहने वाला है। पूर्व में मिली असफलताओं के चलते आज कार्य व्यवसाय के प्रति ज्यादा उत्साह नहीं रहेगा लेकिन आज कार्य क्षेत्र से अवकाश लेना महंगा पड़ सकता है। दोपहर तक परिश्रम के बाद धन की आमद आरंभ हो जाएगी आज पूर्व में जो सौदे मजबूरी में निरस्त करने पड़े थे। वह पुनः मिलने से कुछ ना कुछ लाभ दे कर जाएंगे। धन की आमद आशाजनक तो नहीं दैनिक आवश्यकता से अधिक ही होगी। नौकरी पेशा लोग कार्य पूर्ण करने के दबाव में जल्दबाजी करेंगे। घर परिवार में संतान अथवा किसी अन्य महत्वपूर्ण कारण से दोराय रहेगी। आप जिस कार्य को करने के पक्ष में रहेंगे परिजन उसके विपरीत ही अपना निर्णय लेंगे। अनैतिक मार्ग से धन कमाने का अवसर मिलेगा इसमें कुछ ना कुछ फायदा ही होगा। आकस्मिक अथवा पर्यटक यात्रा करनी पड़ेगी। सेहत सामान्य रहेगी लेकिन शुगर के रोगियों को चोट अथवा घाव होने से गंभीर परेशानी हो सकती है।

तुला⚖ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज के दिन आप व्यर्थ की उलझन में फंस सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र पर वाणी एवं व्यवहार का प्रयोग बहुत सोच-समझकर करें कोई व्यक्ति केवल अपने मनोरंजन के लिए आपको विविध प्रकार से परख सकता है। कार्यक्षेत्र पर बुद्धि विवेक एवं धैर्य का परिचय देंगे लेकिन आज ना चाहकर भी उधार के व्यवहार बढ़ने से आर्थिक विषमताओं का सामना करना पड़ेगा। दोपहर के बाद धन लाभ के अवसर उपलब्ध होंगे फिर भी आर्थिक आमद संतोष प्रदान नहीं कर पाएगी। आज आप लंबी यात्रा की योजना भी बनाएंगे। संध्या बाद का समय सभी प्रकार से संतोषजनक रहेगा मित्र परिजनों के साथ वाहन उत्तम भोजन का सुख मिलेगा। सेहत भी आज के बीते दिन की तुलना में ठीक ही रहेगी फिर भी ठंडी वस्तुओं के प्रयोग से परहेज करें। बाहर ठीक रहेंगे पर घर में आते ही मन विचलित होगा।

वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज के दिन आप परिस्थिति अनुसार स्वयं को ढालने में सफल रहेंगे। आप की मानसिकता जितना मिल जाए उतने में संतोष करने की रहेगी। लेकिन परिजन विशेषकर परिवार के छोटे सदस्य अन्य लोगों की देखा-देखी किसी बहुमूल्य कार्य अथवा वस्तु के लिए जिद कर आपको दुविधा में डालेंगे। आज व्यवसायी हो या नौकरीपेशा दैनिक सुख सुविधा की पूर्ति के लिए किसी को भी ज्यादा भाग दौड़ करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी नहीं आप इसके पक्ष में रहेंगे। कार्य क्षेत्र से धन की आमद मध्यान्ह के बाद अक्समात बढ़ेगी। आज पुराने आर्थिक व्यवहार के कारण किसी से कहासुनी होने की संभावना है। घर का वातावरण भी कुछ समय के लिए उग्र होगा लेकिन आपके नरम व्यवहार के कारण गंभीर रूप धारण नहीं कर पाएगा। संध्या का समय दिन भर की उलझन को भुलाकर शांति से बिताएंगे। लेकिन भविष्य की चिंता मन में लगी ही रहेगी। किसी न किसी रूप में चोट घाव का भय है।

धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन आपके लिए विपरीत फलदायक रहेगा। आप अपनी ही गलती से शत्रु वृद्धि करेंगे। दिन के आरंभ में किसी पारिवारिक सदस्य से व्यर्थ की जिद बहस होगी इसका निर्णय कुछ नहीं निकलेगा लेकिन परिवार में अशांति फैलेगी। आज अध्यात्म के प्रति कुछ ज्यादा आस्था नहीं रहेगी फिर भी कार्यक्षेत्र पर पूर्व में किए किसी परोपकार का फल धन लाभ के रुप में मिल सकता है। कार्यक्षेत्र पर सहकर्मी अथवा अधीनस्थ निजी स्वार्थ पूर्ति के लिए आपके गलत निर्णय पर भी हां में हां मिलाएंगे। कई दिनों से अटके सरकारी कार्य प्रयास करने पर या तो तुरंत बन जाएंगे अथवा परिणाम आप के विरुद्ध जा सकता है। संध्या का समय मित्र परिचितों के साथ आनंद में बिताएंगे लेकिन मित्र मंडली में बैठते समय आज भावुक होने से बचे अन्यथा सार्वजनिक क्षेत्र पर अपमान जैसी स्थिति बन सकती है। खानपान देखभाल कर करें पेट संबंधित परेशानी अन्य रोगों का कारण बन सकती है।

मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज के दिन आप थोड़ी-बहुत मानसिक बेचैनी को छोड़ चैन से ही बताएं। कार्यक्षेत्र पर कम परिश्रम से अधिक लाभ मिल सकता है। पर थोड़ी गुप्त युक्तियों का सहारा भी लेना पड़ेगा। किसी महत्वपूर्ण सौदे अथवा कार्य को लेकर मन में भय की स्थिति बनेगी यहां स्वयं निर्णय लेने से बचें अनुभवी व्यक्ति की सलाह अवश्य लें लाभ नहीं तो नुकसान से भी बचेंगे। धन की आमद आश्चर्यजनक होने पर कई दिनों से लगा आर्थिक सूखा मिटेगा। लेकिन विविध खर्चे पहले ही सर पर रहने के कारण बचेगा नहीं। पारिवारिक वातावरण किसी न किसी बात पर आपकी इच्छा के विरुद्ध ही रहेगा। इस कारण घर से ज्यादा बाहर समय बिताना पसंद करेंगे। भाई बंधुओं से अति आवश्यक होने पर ही बात करें अन्यथा आपको व्यर्थ की बातों में उलझाकर कलह कर सकते हैं। आज यात्रा से बचे वाहन अथवा उपकरणों से भी सावधानी रखें।

कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज का दिन आपके लिए सामान्य फलदायक रहेगा। दिन के आरंभ में माता अथवा किसी अन्य परिजन से मतभेद हो सकते हैं। इसका प्रमुख कारण आपके अंदर अतिआत्मविश्वास एवं परिजनों के विरुद्ध कार्य करना होगा। कार्य क्षेत्र पर आज थोड़ी तेजी रहेगी धन की आमद थोड़े से प्रयास के बाद हो जाएगी लेकिन कार्य करते हुए भी मन में अनजाना भय रहने से खुलकर निर्णय नहीं ले पाएंगे। आज परिजन अथवा किसी अन्य विशेष व्यक्ति के कारण मानसिक बंधन भी अनुभव करेंगे। संध्या का समय दिन की अपेक्षा राहत भरा रहेगा। किसी प्रियजन से मुलाकात होगी सम्मान उपहार का आदान प्रदान मन को प्रसन्न रखेगा। आज दिनभर जिस व्यक्ति को दोष देंगे संध्या के आसपास वही किसी महत्वपूर्ण कार्य को बनाने में सहयोगी बनेगा। सरकारी कार्य बनाने के लिए धन खर्च करना पड़ेगा। आज किसी गुम चोट अथवा गुप्त रोग के कारण परेशानी हो सकती है।

मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज के दिन आप का मन वर्जित कार्यों के प्रति सहज आकर्षित होगा। स्वभाव में भावुकता भी अधिक रहेगी किसी की कही सुनी बातों पर तुरंत विश्वास कर लेंगे। जिसके परिणाम स्वरुप बाहरी संपर्कों की हानि एवं बदनामी हो सकती है। कार्यक्षेत्र पर उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ेगा नौकरी पेशा जातक फिर भी परिस्थिति अनुसार स्वयं को ढाल लेंगे लेकिन व्यवसायी वर्ग को ऐसा करने में परेशानी होगी। फिर भी धन लाभ आज एक से अधिक मार्ग से होगा भले ही थोड़ी थोड़ी मात्रा में ही हो। पारिवारिक वातावरण में असंतोष की भावना रहेगी। स्वयं अथवा परिजन के अनैतिक आचरण के कारण पड़ोसी अथवा किसी अन्य से झगड़ा होने की संभावना है। व्यर्थ के खर्चों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है अन्यथा ऋण वृद्धि होगी। पैतृक सुख सुविधा की वृद्धि के चक्कर में शत्रु वृद्धि के साथ शारीरिक कष्ट भी उठाना पड़ेगा। किसी भी आकस्मिक घटना दुर्घटना के लिए पहले से ही तैयार रहें।

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