27 October 2024: Vaidik Panchang and Horoscope

0
177
#image_title

वैदिक पंचांग (Vaidik Panchang)
⛅दिनांक – 27 अक्टूबर 2024
⛅दिन – रविवार
⛅विक्रम संवत् – 2081
⛅अयन – दक्षिणायन
⛅ऋतु – हेमन्त
⛅मास – कार्तिक
⛅पक्ष – कृष्ण
⛅तिथि – एकादशी पूर्ण रात्रि तक
⛅नक्षत्र – मघा दोपहर 12:24 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
⛅योग – ब्रह्म पूर्ण रात्रि तक
⛅राहु काल – शाम 04:39 से शाम 06:05 तक
⛅सूर्योदय – 06:42
⛅सूर्यास्त – 06:05
⛅दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:01 से 05:52 तक
⛅अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:01 से दोपहर 12:46 तक
⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 11:58 अक्टूबर 27 से रात्रि 12:49 अक्टूबर 28 तक
⛅विशेष – एकादशी को सिम्बी (सेम) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
एकादशी व्रत 29 अक्टूबर सोमवार को।
🔹एकादशी में क्या करें, क्या न करें ?🔹
🔸1. एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें । नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ शुद्ध कर लें । वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है, अत: स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करें ।
🔸2. स्नानादि कर के गीता पाठ करें, श्री विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें ।

हर एकादशी को श्री विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है ।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।

एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से श्री विष्णुसहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l

🔸3. `ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जप करना चाहिए ।

🔸4. चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करना चाहिए, यथा संभव मौन रहें ।

🔸5. एकादशी के दिन भूल कर भी चावल नहीं खाना चाहिए न ही किसी को खिलाना चाहिए । इस दिन फलाहार अथवा घर में निकाला हुआ फल का रस अथवा दूध या जल पर रहना लाभदायक है ।

🔸6. व्रत के (दशमी, एकादशी और द्वादशी) – इन तीन दिनों में काँसे के बर्तन, मांस, प्याज, लहसुन, मसूर, उड़द, चने, कोदो (एक प्रकार का धान), शाक, शहद, तेल और अत्यम्बुपान (अधिक जल का सेवन) – इनका सेवन न करें ।

🔸7. फलाहारी को गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए । आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए ।

🔸8. जुआ, निद्रा, पान, परायी निन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध तथा झूठ, कपटादि अन्य कुकर्मों से नितान्त दूर रहना चाहिए ।

🔸9. भूलवश किसी निन्दक से बात हो जाय तो इस दोष को दूर करने के लिए भगवान सूर्य के दर्शन तथा धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा माँग लेनी चाहिए ।

🔸10. एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगायें । इससे चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है ।

🔸11. इस दिन बाल नहीं कटायें ।

🔸12. इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करें किन्तु स्वयं किसीका दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें ।

🔸13. एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे जागरण करना चाहिए (जागरण रात्र 1 बजे तक) ।

🔸14. जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में दीपक जलाता है, उसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता है ।

🔹 इस विधि से व्रत करनेवाला उत्तम फल को प्राप्त करता है ।

रामा एकादशी व्रत कथा
भाव-विह्वल होते हुए अर्जुन ने कहा- “हे श्रीकृष्ण! अब आप मुझे कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइए। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? इस एकादशी का व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपा करके यह सब विधानपूर्वक कहिए।”

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- “हे अर्जुन! कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है। इसका व्रत करने से सभी पापों का शमन हो जाता है। इसकी कथा इस प्रकार है, ध्यानपूर्वक श्रवण करो-

पौराणिक काल में मुचुकुंद नाम का राजा राज्य करता था।

इन्द्र, वरुण, कुबेर, विभीषण आदि उसके मित्र थे। वह बड़ा सत्यवादी तथा विष्णुभक्त था। उसका राज्य बिल्कुल निष्कंटक था। उसकी चन्द्रभागा नाम की एक कन्या थी, जिसका विवाह उसने राजा चन्द्रसेन के पुत्र सोभन से कर दिया। वह राजा एकादशी का व्रत बड़े ही नियम से करता था और उसके राज्य में सभी क्रठोरता से इस नियम का पालन करते थे।

एक बार की बात है कि सोभन अपनी ससुराल आया हुआ था। वह कार्तिक का महीना था। उसी मास में महापुण्यदायिनी रमा एकादशी आ गई। इस दिन सभी व्रत रखते थे। चन्द्रभागा ने सोचा कि मेरे पति तो बड़े कमजोर हृदय के हैं, वे एकादशी का व्रत कैसे करेंगे, जबकि पिता के यहां तो सभी को व्रत करने की आज्ञा है। मेरा पति राजाज्ञा मानेगा, तो बहुत कष्ट पाएगा। चन्द्रभागा को जिस बात का डर था वही हुआ। राजा ने आदेश जारी किया कि इस समय उनका दामाद राज्य में पधारा हुआ है, अतः सारी प्रजा विधानपूर्वक एकादशी का व्रत करे। जब दशमी आई तब राज्य में ढिंढो़रा पिटा, उसे सुनकर सोभन अपनी पत्नी के पास गया और बोला – ‘हे प्रिय! तुम मुझे कुछ उपाय बतलाओ, क्योंकि मैं उपवास नहीं कर सकता, यदि मैं उपवास करूंगा तो अवश्य ही मर जाऊंगा।’

पति की बात सुन चन्द्रभागा ने कहा – ‘हे स्वामी! मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता। यहां तक कि हाथी, घोड़ा, ऊंट, पशु आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं करते, फिर भला मनुष्य कैसे भोजन कर सकते हैं? यदि आप उपवास नहीं कर सकते तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहां रहेंगे तो आपको व्रत तो अवश्य ही करना पड़ेगा।’

पत्नी की बात सुन सोभन ने कहा – ‘हे प्रिय! तुम्हारी राय उचित है, परंतु मैं व्रत करने के डर से किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाऊंगा, अब मैं व्रत अवश्य ही करूंगा, परिणाम चाहे कुछ भी क्यों न हो, भाग्य में लिखे को भला कौन टाल सकता है।’

सभी के साथ सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया और भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल होने लगा।

सूर्य नारायण भी अस्त हो गए और जागरण के लिए रात्रि भी आ गई। वह रात सोभन को असहनीय दुख देने वाली थी। दूसरे दिन सूर्योदय होने से पूर्व ही भूख-प्यास के कारण सोभन के प्राण-पखेरू उड़ गए।

राजा ने सोभन के मृत शरीर को जल-प्रवाह करा दिया और अपनी पुत्री को आज्ञा दी कि वह सती न हो और भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा रखे।

चन्द्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई। वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी।

उधर रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को जल से निकाल लिया गया और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण तथा शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ। उसे वहां का राजा बना दिया गया। उसके महल में रत्न तथा स्वर्ण के खंभे लगे हुए थे। राजा सोभन स्वर्ण तथा मणियों के सिंहासन पर सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठा था। गंधर्व तथा अप्सराएं नृत्य कर उसकी स्तुति कर रहे थे। उस समय राजा सोभन मानो दूसरा इन्द्र प्रतीत हो रहा था। उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर में रहने वाला सोमशर्मा नाम का एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के लिए निकला हुआ था। घूमते-घूमते वह सोभन के राज्य में जा पहुंचा, उसको देखा। वह ब्राह्मण उसको राजा का जमाई जानकर उसके निकट गया। राजा सोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ और अपने श्वसुर तथा स्त्री चन्द्रभागा की कुशल क्षेम पूछने लगा। सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा – ‘हे राजन! हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी चन्द्रभागा भी कुशल है। अब आप अपना वृत्तांत बतलाइए। आपने तो रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे। मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है कि ऐसा विचित्र और सुंदर नगर जिसको न तो मैंने कभी सुना और न कभी देखा है, आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ?’

इस पर सोभन ने कहा – ‘हे देव! यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है। इसी से मुझे यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ है, किंतु यह अस्थिर है।’

सोभन की बात सुन ब्राह्मण बोला – ‘हे राजन! यह अस्थिर क्यों है और स्थिर किस प्रकार हो सकता है, सों आप मुझे समझाइए। यदि इसे स्थिर करने के लिए मैं कुछ कर सका तो वह उपाय मैं अवश्य ही करूंगा।’ राजा सोभन ने कहा – ‘हे ब्राह्मण देव! मैंने वह व्रत विवश होकर तथा श्रद्धारहित किया था। उसके प्रभाव से मुझे यह अस्थिर नगर प्राप्त हुआ, परंतु यदि तुम इस वृत्तांत को राजा मुचुकुंद की पुत्री चन्द्रभागा पे कहोगे तो वह इसको स्थिर बना सकती हे।’

राजा सोभन की बात सुन ब्राह्मण अपने नगर को लौट आया और उसने चन्द्रभागा से सारा वृत्तांत कह सुनाया। इस पर राजकन्या चन्द्रभागा बोली – ‘हे ब्राह्मण देव! आप क्या वह सब दृश्य प्रत्यक्ष देखकर आए हैं या अपना स्वप्न कह रहे हैं?’

चन्द्रभागा की बात सुन ब्राह्मण बोला – ‘हे राजकन्या! मैंने तेरे पति सोभन तथा उसके नगर को प्रत्यक्ष देखा है, किंतु वह नगर अस्थिर है। तू कोई ऐसा उपाय कर जिससे कि वह स्थिर हो जाए।’

ब्राह्मण की बात सुन चन्द्रभागा बोली – ‘हे ब्राह्मण देव! आप मुझे उस नगर में ले चलिए, मैं अपने पति को देखना चाहती हूं। मैं अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर बना दूंगी।’

चन्द्रभागा के वचनों को सुनकर वह ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम में ले गया। वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चन्द्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया। चन्द्रभागा मंत्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई।

सोभन ने अपनी पत्नी चन्द्रभागा को देखकर उसे प्रसन्नतापूर्वक आसन पर अपने पास बैठा लिया।

चन्द्रभागा ने कहा – ‘हे स्वामी! अब आप मेरे पुण्य को सुनिए, जब मैं अपने पिता के घर में आठ वर्ष की थी, तब ही से मैं सविधि एकादशी का व्रत कर रही हूं। उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा।’ चन्द्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके तथा दिव्य वस्त्रालंकारो से सजकर अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी। हे अर्जुन! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है। जो मनुष्य रमा एकादशी के व्रत को करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य रमा एकादशी का माहात्म्य सुनते हैं, वह अंत समय में विष्णु लोक को जाते हैं।”

कथा-सार
भगवान श्रीहरि बड़े दयालु और क्षमावान हैं। श्रद्धापूर्वक या विवश होकर भी यदि कोई उनका पूजन या एकादशी व्रत करता है तो वह उसे भी उत्तम फल प्रदान करते हैं, परंतु मनुष्य को चाहिए कि वह भगवान का पूजन पूरी श्रद्धा से करे।

सोभन अपनी पत्नी द्वारा श्रद्धापूर्वक किए गए एकादशी व्रतों के कारण अपने राज्य को स्थिर कर सका। ऐसी सुकर्मा पत्नी भगवान श्रीहरि की कृपा से ही प्राप्त हो सकती है।

कार्तिक माहात्म्य
नारदजी कहते हैं–‘दोनो ओर से गदाओं, बाणों और शूलों आदि का भीषण प्रहार हुआ। दैत्यों के तीक्ष्ण प्रहारों से व्याकुल देवता इधर-उधर भागने लगे।
तब देवताओं को इस प्रकार भयभीत हुआ देख गरुड़ पर चढ़े भगवान युद्ध में आगे बढ़े और उन्होंने अपना सार्ङ्ग नामक धनुष उठाकर बड़े जोर का टंकार किया। त्रिलोकी शाब्दित हो गई।
पलमात्र में भगवान ने हजारों दैत्यों के सिरों को काट गिराया फिर तो विष्णु और जलन्धर का महासंग्राम हुआ। बाणों से आकाश भर गया। लोक आश्चर्य करने लगे।
भगवान विष्णु ने बाणों के वेग से उस दैत्य की ध्वजा, छत्र और धनुष-बाण काट डाले। इससे व्यथित हो उसने अपनी गदा उठाकर गरुड़ के मस्तक पर दे मारी। साथ ही क्रोध से उस दैत्य ने विष्णु जी की छाती में भी एक तीक्ष्ण बाण मारा।
इसके उत्तर में विष्णु जी ने उसकी गदा काट दी और अपने शार्ङ्ग धनुष पर बाण चढ़ाकर उसको बींधना आरम्भ किया। इस पर जलन्धर इन पर अपने पैने बाण बरसाने लगा। उसने विष्णु जी को कई पैने बाण मारकर वैष्णव धनुष को काट दिया।
धनुष कट जाने पर भगवान ने गदा ग्रहण कर ली और शीघ्र ही जलन्धर को खींचकर मारी, परन्तु उस अग्निवत अमोघ गदा की मार से भी वह दैत्य कुछ भी चलायमान न हुआ। उसने एक अग्निमुख त्रिशूल उठाकर विष्णु पर छोड़ दिया।
विष्णुजी ने शिव के चरणों का स्मरण कर नन्दन नामक त्रिशूल से उसके त्रिशूल को छेद दिया। जलन्धर ने झपटकर विष्णुजी की छाती पर एक जोर का मुष्टिक मारा, उसके उत्तर में भगवान विष्णु ने भी उसकी छाती पर अपनी एक मुष्टि का प्रहार किया।
फिर दोनों घुटने टेक बाहुओं और मुष्टिको से बाहु-युद्ध करने लगे। कितनी ही देर तक भगवान उसके साथ युद्ध करते रहे तब सर्वश्रेष्ठ मायावी भगवान उस दैत्यराज से मेघवाणी में बोले
भगवान् विष्णु ने कहा–‘रे रण दुर्मद दैत्यश्रेष्ठ! तू धन्य है जो इस महायुद्ध में इन बड़े-बड़े आयुधों से भी भयभीत न हुआ। तेरे इस युद्ध से मैं प्रसन्न हूँ, तू जो चाहे वर माँग।’
मायावी विष्णु की ऐसी वाणी सुनकर जलन्धर ने कहा–‘हे भावुक! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो यह वर दीजिए कि आप मेरी बहन तथा अपने सारे कुटुम्बियों सहित मेरे घर पर निवास करें।’
नारदजी बोले–‘उसके ऐसे वचन सुनकर विष्णुजी को खेद तो हुआ किन्तु उसी क्षण देवेश ने ‘तथास्तु’ कह दिया।
अब विष्णुजी सब देवताओं के साथ जलन्धरपुर में जाकर निवास करने लगे। जलन्धर अपनी बहन लक्ष्मी और देवताओं सहित विष्णु को वहाँ पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ।
फिर तो देवताओं के पास जो भी रत्नादि थे सबको ले जलन्धर पृथ्वी पर आया। निशुम्भ को पाताल में स्थापित कर दिया और देव, दानव, यक्ष, गन्धर्व, सिद्ध, सर्प, राक्षस, मनुष्य आदि सबको अपना वंशवर्ती बना त्रिभुवन पर शासन करने लगा। उसने धर्मानुसार सुपुत्रों के समान प्रजा का पालन किया। उसके धर्मराज्य में सभी सुखी थे।’

“मैं न होता,तो क्या होता ?”
“अशोक वाटिका” में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा

तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सिर काट लेना चाहिये!

किन्तु, अगले ही क्षण, उन्होंने देखा

“मंदोदरी” ने रावण का हाथ पकड़ लिया !

यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि

यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?

बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता तो क्या होता ?

परन्तु ये क्या हुआ?

सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये,

कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!

आगे चलकर जब “त्रिजटा” ने कहा कि “लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!”

तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है

और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है,

एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा!

जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े,

तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की

और जब “विभीषण” ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो

हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है!

आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि

बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ में कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये

तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी,

वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता ?

पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो

मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिये सदैव याद रखें, कि संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है!

हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं!

इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि…

मैं न होता, तो क्या होता ?

ना मैं श्रेष्ठ हूँ,

ना ही मैं ख़ास हूँ,

मैं तो बस छोटा सा,

भगवान का दास हूं..!!
जय श्री राम

आज का राशिफल
मेष (21 मार्च – 19 अप्रैल) आज आपके अपने काम में कुछ नया और इनोवेटिव करने की जरूरत है। आपके प्रयासों से आपको सफलता मिलेगी।

वृषभ (20 अप्रैल – 20 मई) आज आपके वित्तीय मामलों में कुछ सुधार हो सकता है। आपके निवेश से आपका फ़ायदा होगा।

मिथुन (21 मई – 20 जून) आज आपके रिश्ते में कुछ तनाव हो सकता है। आपको धैर्य और समझ से काम लेना होगा।

कर्क (21 जून – 22 जुलाई) आज आपके करियर में कुछ प्रगति हो सकती है। आपकी कड़ी मेहनत का फल आपको मिलेगा।

सिंह (23 जुलाई – 22 अगस्त) आज आपके स्वास्थ्य में कुछ समस्या हो सकती है। आपको अपनी सेहत का ध्यान रखना होगा।

कन्या (23 अगस्त – 22 सितंबर) आज आपकी शिक्षा में कुछ सफलता हो सकती है। आपके ज्ञान और कौशल में वृद्धि होगी।

तुला (23 सितंबर – 22 अक्टूबर) आज आपके रिश्ते में कुछ रोमांस हो सकता है। आपके पार्टनर के साथ आपके रिश्ते मजबूत होंगे।

वृश्चिक (23 अक्टूबर – 21 नवंबर) आज आपके वित्तीय मामलों में कुछ चुनौती हो सकती है। आपको अपने खर्चों पर नियंत्रण रखना होगा।

धनु (22 नवंबर – 21 दिसंबर) आज आपके करियर में कुछ अवसर हैं। आपके कौशल और अनुभव से आपको सफलता मिलेगी।

मकर (22 दिसंबर – 19 जनवरी) आज आपके स्वास्थ्य में कुछ सुधार हो सकता है। आपको अपनी फिटनेस पर ध्यान देना होगा।

कुंभ (20 जनवरी – 18 फरवरी) आज आपके रिश्ते में कुछ गलतफहमी हो सकती है। आपको कम्युनिकेशन और ट्रस्ट पर फोकस करना होगा।

मीन (19 फरवरी – 20 मार्च) आज आपके आध्यात्मिक विकास में कुछ प्रगति हो सकती है। आपको अपने लक्ष्यों और मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

Read more

26 October 2024: Vaidik Panchang and Horoscope

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here