वैदिक पंचांग (Vaidik Panchang)
दिनांक – 15 मार्च 2025
दिन – शनिवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत -1946
अयन – उत्तरायण
ऋतु – वसंत ॠतु
मास – चैत्र (गुजरात-महाराष्ट्र फाल्गुन)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – प्रतिपदा दोपहर 02:33 तक तत्पश्चात द्वितीया
नक्षत्र – उत्तराफाल्गुनी सुबह 08:54 तक हस्त
योग – गण्ड दोपहर 02:00 तक तत्पश्चात वृद्धि
राहुकाल – सुबह 09:47 से सुबह 11:18 तक
सूर्योदय 06:48
सूर्यास्त – 06:46
दिशाशूल – पूर्व दिशा मे
*व्रत पर्व विवरण-
*विशेष- प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं क्योकि यह धन का नाश करने वाला है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
चैत्र मास
होली के तुरंत बाद चैत्र मास का प्रारंभ हो जाता है। चैत्र हिन्दू धर्म का प्रथम महीना है।
चित्रा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने के कारण इसका नाम चैत्र पड़ा (चित्रानक्षत्रयुक्ता पौर्णमासी यत्र सः)।
इस वर्ष 15 मार्च 2025 (उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार) चैत्र का आरम्भ होगा और गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार 30 मार्च से चैत्र मास प्रारंभ होगा । चैत्र मास को मधु मास के नाम से जाना जाता है।
इस मास में बसंत ऋतु का यौवन पृथ्वी पर देखने को मिलता है।
चैत्र में रोहिणी और अश्विनी शून्य नक्षत्र हैं इनमें कार्य करने से धन का नाश होता है।
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार
“चैत्रं तु नियतो मासमेकभक्तेन यः क्षिपेत्। सुवर्णमणिमुक्ताढ्ये कुले महति जायते।।”
जो नियम पूर्वक रहकर चैत्रमास को एक समय भोजन करते बिताता है, वह सुवर्ण, मणि और मोतियों से सम्पन्न महान कुल में जन्म लेता है ।
चैत्र में गुड़ खाना मना बताया गया है। चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।
शिवपुराण के अनुसार चैत्र में गौ का दान करने से कायिक, वाचिक तथा मानसिक पापों का निवारण होता है .
देव प्रतिष्ठा के लिये चैत्र मास शुभ है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्ष का शुभारम्भ होता है। हिन्दू नववर्ष के चैत्र मास से ही शुरू होने के पीछे पौराणिक मान्यता है कि भगवान ब्रह्मदेव ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी।
ताकि सृष्टि निरंतर प्रकाश की ओर बढ़े।
चैत्रमासि जगद् ब्रह्मा स सर्वा प्रथमेऽवानि ।
शुक्ल पक्षे समग्रं तत – तदा सूर्योदय सति ।। (ब्रह्मपुराण)
नारद पुराण में भी कहा गया है की चैत्रमास के शुक्लपक्ष में प्रथमदिं सूर्योदय काल में ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण जगत की सृष्टि की थी।
चैत्रे मासि जगद्ब्रह्मा ससज प्रथमेऽहनि ।।
शुक्लपक्षे समग्रं वै तदा सूर्योदये सति ।।
इसलिए खास है चैत्र
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र में विष्कुम्भ योग में दिन के समय भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। “कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा । रेवत्यां योग-विष्कुम्भे दिवा द्वादश-नाड़िका: ।। मत्स्यरूपकुमार्यांच अवतीर्णो हरि: स्वयम् ।।”
चैत्र शुक्ल तृतीया तथा चैत्र पूर्णिमा मन्वरादि तिथियाँ हैं। इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
भविष्यपुराण में चैत्र शुक्ल से विशेष सरस्वती व्रत का विधान वर्णित है ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्र मनाये जाते हैं जिसमें व्रत रखने के साथ माँ जगतजननी की पूजा का विशेष विधान है।
चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाती है।
युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से माना जाता है।
मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को हुआ था।
युगाब्द (युधिष्ठिर संवत) का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को माना जाता है।
उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को किया गया था।
शनिवार के दिन किए जाने वाले कुछ उपाय:
पीपल के पेड़ की पूजा:
हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ को बहुत पूजनीय माना जाता है। शनिवार के दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं, सात बार परिक्रमा करें, और शनि मंत्र का जाप करें.
सरसों के तेल का दीपक:
शनिवार की शाम को शनि मंदिर में जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं, इससे शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है.
लौंग का प्रयोग:
शनिवार को दीपक में लौंग डालकर जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुधार होता है.
दान-पुण्य:
शनिवार के दिन गरीबों को दान करें, खासकर काले रंग की वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है.
शनि यंत्र की पूजा:
शनि यंत्र की पूजा करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.
काले कुत्ते की सेवा:
शनिदेव को काला कुत्ता प्रिय है, इसलिए शनिवार के दिन काले कुत्ते की सेवा करें और उसे भोजन कराएं.
हनुमान जी की पूजा:
शनिदेव को हनुमान जी का भक्त माना जाता है, इसलिए शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें.
लोबान जलाएं:
शनिवार के दिन घर में लोबान जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और शनिदेव प्रसन्न होते हैं.
शनि स्तोत्र का पाठ:
शनिवार के दिन शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और लंबी आयु का वरदान मिलता है.
कुछ विशेष चीजें:
काला तिल: शनिदेव को काला तिल प्रिय है, इसलिए शनिवार को काले तिल का भोग लगाएं.
गुड़: शनिदेव को गुड़ भी प्रिय है, इसलिए शनिवार को गुड़ का भोग लगाएं.
उड़द की दाल: अगर आप कोर्ट-कचहरी से जुड़े किसी मामले में फंसे हैं तो उड़द की दाल पीपल के पेड़ के पास दबा दें.
सफेद चंदन की गोली: अगर आप जीवन में किसी प्रकार की परेशानी से जूझ रहे हैं तो सफेद चंदन की गोली अपने पास रखें या गले में पहनें.
हिंदू धर्मग्रंथों का सार, जानिए किस ग्रंथ में क्या है?
अधिकतर हिंदुओं के पास अपने ही धर्मग्रंथ को पढ़ने की फुरसत नहीं है। वेद, उपनिषद पढ़ना तो दूर वे गीता तक को नहीं पढ़ते जबकि गीता को एक घंटे में पढ़ा जा सकता है। हालांकि कई जगह वे भागवत पुराण सुनने या रामायण का अखंड पाठ करने के लिए समय निकाल लेते हैं या घर में सत्यनारायण की कथा करवा लेते हैं। लेकिन आपको यह जानकारी होना चाहिए कि पुराण, रामायण और महाभारत हिन्दुओं के धर्मग्रंथ नहीं है। धर्मग्रंथ तो वेद ही है।
शास्त्रों को दो भागों में बांटा गया है:- श्रुति और स्मृति। श्रुति के अंतर्गत धर्मग्रंथ वेद आते हैं और स्मृति के अंतर्गत इतिहास और वेदों की व्याख्या की पुस्तकें पुराण, महाभारत, रामायण, स्मृतियां आदि आते हैं। हिन्दुओं के धर्मग्रंथ तो वेद ही है। वेदों का सार उपनिषद है और उपनिषदों का सार गीता है। आओ जानते हैं कि उक्त ग्रंथों में क्या है।
वेदों में क्या है?
वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, संस्कार, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है। वेद चार है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।
ऋग्वेद : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा आदि की भी जानकारी मिलती है।
यजुर्वेद : यजु अर्थात गतिशील आकाश एवं कर्म। यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। तत्व ज्ञान अर्थात रहस्यमयी ज्ञान। ब्रम्हांड, आत्मा, ईश्वर और पदार्थ का ज्ञान। इस वेद की दो शाखाएं हैं शुक्ल और कृष्ण।
सामवेद: साम का अर्थ रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। इसमें सविता, अग्नि और इंद्र देवताओं के बारे में जिक्र मिलता है। इसी से शास्त्रिय संगीत और नृत्य का जिक्र भी मिलता है। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें संगीत के विज्ञान और मनोविज्ञान का वर्णन भी मिलता है।
अथर्वदेव: अथर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि का जिक्र है। इसमें भारतीय परंपरा और ज्योतिष का ज्ञान भी मिलता है।
उपनिषद् क्या है?
उपनिषद वेदों का सार है। सार अर्थात निचोड़ या संक्षिप्त। उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं। ईश्वर है या नहीं, आत्मा है या नहीं, ब्रह्मांड कैसा है आदि सभी गंभीर, तत्व ज्ञान, योग, ध्यान, समाधि, मोक्ष आदि की बातें उपनिषद में मिलेगी। उपनिषदों को प्रत्येक हिन्दुओं को पढ़ना चाहिए। इन्हें पढ़ने से ईश्वर, आत्मा, मोक्ष और जगत के बारे में सच्चा ज्ञान मिलता है।
वेदों के अंतिम भाग को ‘वेदांत’ कहते हैं। वेदांतों को ही उपनिषद कहते हैं। उपनिषद में तत्व ज्ञान की चर्चा है। उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गए हैं, जैसे- 1. ईश, 2. केन, 3. कठ, 4. प्रश्न, 5. मुण्डक, 6. माण्डूक्य, 7. तैत्तिरीय, 8. ऐतरेय, 9. छांदोग्य, 10. बृहदारण्यक, 11. कौषीतकि और 12. श्वेताश्वतर।
षड्दर्शन क्या है?
वेद से निकला षड्दर्शन : वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। इसे भारत का षड्दर्शन कहते हैं। दरअसल यह वेद के ज्ञान का श्रेणीकरण है। ये छह दर्शन हैं:- 1.न्याय, 2.वैशेषिक, 3.सांख्य, 4.योग, 5.मीमांसा और 6.वेदांत। वेदों के अनुसार सत्य या ईश्वर को किसी एक माध्यम से नहीं जाना जा सकता। इसीलिए वेदों ने कई मार्गों या माध्यमों की चर्चा की है।
गीता में क्या है?
महाभारत के 18 अध्याय में से एक भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता में भी कुल 18 अध्याय हैं। 10 अध्यायों की कुल श्लोक संख्या 700 है। वेदों के ज्ञान को नए तरीके से किसी ने व्यवस्थित किया है तो वह हैं भगवान श्रीकृष्ण। अत: वेदों का पॉकेट संस्करण है गीता जो हिन्दुओं का सर्वमान्य एकमात्र ग्रंथ है। किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह वेद या उपनिषद पढ़ें उनके लिए गीता ही सबसे उत्तम धर्मग्रंथ है। गीता को बार बार पढ़ने के बाद ही वह समझ में आने लगती है।
गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म मार्ग की चर्चा की गई है। उसमें यम-नियम और धर्म-कर्म के बारे में भी बताया गया है। गीता ही कहती है कि ब्रह्म (ईश्वर) एक ही है। गीता को बार-बार पढ़ेंगे तो आपके समक्ष इसके ज्ञान का रहस्य खुलता जाएगा। गीता के प्रत्येक शब्द पर एक अलग ग्रंथ लिखा जा सकता है।
गीता में सृष्टि उत्पत्ति, जीव विकासक्रम, हिन्दू संदेवाहक क्रम, मानव उत्पत्ति, योग, धर्म, कर्म, ईश्वर, भगवान, देवी, देवता, उपासना, प्रार्थना, यम, नियम, राजनीति, युद्ध, मोक्ष, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, वंश, कुल, नीति, अर्थ, पूर्वजन्म, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्मसिद्धांत, त्रिगुण की संकल्पना, सभी प्राणियों में मैत्रीभाव आदि सभी की जानकारी है।
श्रीमद्भगवद्गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी है। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञानरूपी प्रकाश है, जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है। गीता को अर्जुन के अलावा और संजय ने सुना और उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में श्रीकृष्ण ने- 574, अर्जुन ने- 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने- 1 श्लोक कहा है।
उपरोक्त ग्रंथों के ज्ञान का सार बिंदूवार :
1.ईश्वर के बारे में :
ब्रह्म (परमात्मा) एक ही है जिसे कुछ लोग सगुण (साकार) कुछ लोग निर्गुण (निराकार) कहते हैं। हालांकि वह अजन्मा, अप्रकट है। उसका न कोई पिता है और न ही कोई उसका पुत्र है। वह किसी के भाग्य या कर्म को नियंत्रित नहीं करता। ना कि वह किसी को दंड या पुरस्कार देता है। उसका न तो कोई प्रारंभ है और ना ही अंत। वह अनादि और अनंत है। उसकी उपस्थिति से ही संपूर्ण ब्रह्मांड चलायमान है। सभी कुछ उसी से उत्पन्न होकर अंत में उसी में लीन हो जाता है। ब्रह्मलीन।
2.ब्रह्मांड के बारे में :
यह दिखाई देने वाला जगत फैलता जा रहा है और दूसरी ओर से यह सिकुड़ता भी जा रहा है। लाखों सूर्य, तारे और धरतीयों का जन्म है तो उसका अंत भी। जो जन्मा है वह मरेगा। सभी कुछ उसी ब्रह्म से जन्में और उसी में लीन हो जाने वाले हैं। यह ब्रह्मांड परिवर्तनशील है। इस जगत का संचालन उसी की शक्ति से स्वत: ही होता है। जैसे कि सूर्य के आकर्षण से ही धरती अपनी धूरी पर टिकी हुई होकर चलायमान है। उसी तरह लाखों सूर्य और तारे एक महासूर्य के आकर्षण से टिके होकर संचालित हो रहे हैं। उसी तरह लाखों महासूर्य उस एक ब्रह्मा की शक्ति से ही जगत में विद्यमान है।
3.आत्मा के बारे में :
आत्मा का स्वरूप ब्रह्म (परमात्मा) के समान है। जैसे सूर्य और दीपक में जो फर्क है उसी तरह आत्मा और परमात्मा में फर्क है। आत्मा के शरीर में होने के कारण ही यह शरीर संचालित हो रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह कि संपूर्ण धरती, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारे भी उस एक परमपिता की उपस्थिति से ही संचालित हो रहे हैं।
आत्मा का ना जन्म होता है और ना ही उसकी कोई मृत्यु है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है। यह आत्मा अजर और अमर है। आत्मा को प्रकृति द्वारा तीन शरीर मिलते हैं एक वह जो स्थूल आंखों से दिखाई देता है। दूसरा वह जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं जो कि ध्यानी को ही दिखाई देता है और तीसरा वह शरीर जिसे कारण शरीर कहते हैं उसे देखना अत्यंत ही मुश्लिल है। बस उसे वही आत्मा महसूस करती है जो कि उसमें रहती है। आप और हम दोनों ही आत्मा है हमारे नाम और शरीर अलग अलग हैं लेकिन भीतरी स्वरूप एक ही है।
4.स्वर्ग और नरक के बारे में :
वेदों के अनुसार पुराणों के स्वर्ग या नर्क को गतियों से समझा जा सकता है। स्वर्ग और नर्क दो गतियां हैं। आत्मा जब देह छोड़ती है तो मूलत: दो तरह की गतियां होती है:- 1.अगति और 2. गति।
1.अगति: अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है।
2.गति: गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है या वह अपने कर्मों से मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
अगति के चार प्रकार है- 1.क्षिणोदर्क, 2.भूमोदर्क, 3. अगति और 4.दुर्गति।
क्षिणोदर्क क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है।
भूमोदर्क: भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।
अगति: अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।
दुर्गति दुर्गति में वह कीट, कीड़ों जैसा जीवन पाता है।
गति के भी 4 प्रकार :-गति के अंतर्गत चार लोक दिए गए हैं:- 1.ब्रह्मलोक, 2.देवलोक, 3.पितृलोक और 4.नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है।
तीन मार्गों से यात्रा :
जब भी कोई मनुष्य मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं। ऐसा कहते हैं कि उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। ये तीन मार्ग हैं- अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।
5.धर्म और मोक्ष के बारे में :
धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म का अर्थ है यम और नियम को समझकर उसका पालन करना। नियम ही धर्म है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य होता है। हिंदु धर्म के अनुसार व्यक्ति को मोक्ष के बारे में विचार करना चाहिए। मोक्ष क्या है? स्थितप्रज्ञ आत्मा को मोक्ष मिलता है। मोक्ष का भावर्थ यह कि आत्मा शरीर नहीं है इस सत्य को पूर्णत: अनुभव करके ही अशरीरी होकर स्वयं के अस्तित्व को पूख्ता करना ही मोक्ष की प्रथम सीढ़ी है।
6.व्रत और त्योहार के बारे में :
हिन्दु धर्म के सभी व्रत, त्योहार या तीर्थ सिर्फ मोक्ष की प्राप्त हेतु ही निर्मित हुए हैं। मोक्ष तब मिलेगा जब व्यक्ति स्वस्थ रहकर प्रसन्नचित्त और खुशहाल जीवन जीएगा। व्रत से शरीर और मन स्वस्थ होता है। त्योहार से मन प्रसन्न होता है और तीर्थ से मन और मस्तिष्क में वैराग्य और आध्यात्म का जन्म होता है।
मौसम और ग्रह नक्षत्रों की गतियों को ध्यान में रखकर बनाए गए व्रत और त्योहार का महत्व अधिक है। व्रतों में चतुर्थी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या, पूर्णिमा, श्रावण मास और कार्तिक मास के दिन व्रत रखना श्रेष्ठ है। यदि उपरोक्त सभी नहीं रख सकते हैं तो श्रावण के पूरे महीने व्रत रखें। त्योहारों में मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी और हनुमान जन्मोत्सव ही मनाएं। पर्व में श्राद्ध और कुंभ का पर्व जरूर मनाएं।
व्रत करने से काया निरोगी और जीवन में शांति मिलती है। सूर्य की 12 और 12 चंद्र की संक्रांति होती है। सूर्य संक्रांतियों में उत्सव का अधिक महत्व है तो चंद्र संक्रांति में व्रतों का अधिक महत्व है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन। इसमें से श्रावण मास को व्रतों में सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है। इसके अलावा प्रत्येक माह की एकादशी, चतुर्दशी, चतुर्थी, पूर्णिमा, अमावस्या और अधिमास में व्रतों का अलग-अलग महत्व है। सौरमास और चंद्रमास के बीच बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। साधुजन चतुर्मास अर्थात चार महीने श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह में व्रत रखते हैं।
उत्सव, पर्व और त्योहार सभी का अलग-अलग अर्थ और महत्व है। प्रत्येक ऋतु में एक उत्सव है। उन त्योहार, पर्व या उत्सव को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र, स्मृति, पुराण और आचार संहिता में मिलता है। चंद्र और सूर्य की संक्रांतियों अनुसार कुछ त्योहार मनाएं जाते हैं। 12 सूर्य संक्रांति होती हैं जिसमें चार प्रमुख है:- मकर, मेष, तुला और कर्क। इन चार में मकर संक्रांति महत्वपूर्ण है। सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ, संक्रांति और कुंभ। पर्वों में रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, गुरुपूर्णिमा, वसंत पंचमी, हनुमान जयंती, नवरात्री, शिवरात्री, होली, ओणम, दीपावली, गणेशचतुर्थी और रक्षाबंधन प्रमुख हैं। हालांकि सभी में मकर संक्रांति और कुंभ को सर्वोच्च माना गया है।
7.तीर्थ के बारे में :
तीर्थ और तीर्थयात्रा का बहुत पुण्य है। जो मनमाने तीर्थ और तीर्थ पर जाने के समय हैं उनकी यात्रा का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं। तीर्थों में चार धाम, ज्योतिर्लिंग, अमरनाथ, शक्तिपीठ और सप्तपुरी की यात्रा का ही महत्व है। अयोध्या, मथुरा, काशी और प्रयाग को तीर्थों का प्रमुख केंद्र माना जाता है, जबकि कैलाश मानसरोवर को सर्वोच्च तीर्थ माना है। बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी ये चार धान है। सोमनाथ, द्वारका, महाकालेश्वर, श्रीशैल, भीमाशंकर, ॐकारेश्वर, केदारनाथ विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वरम, घृष्णेश्वर और बैद्यनाथ ये द्वादश ज्योतिर्लिंग है। काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति उज्जैन ये सप्तपुरी। उपरोक्त कहे गए तीर्थ की यात्रा ही धर्मसम्मत है।
8.संस्कार के बारे में :
संस्कारों के प्रमुख प्रकार सोलह बताए गए हैं जिनका पालन करना हर हिंदू का कर्तव्य है। इन संस्कारों के नाम है-गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेधन, विद्यारंभ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत, सम्वर्तन, विवाह और अंत्येष्टि। प्रत्येक हिन्दू को उक्त संस्कार को अच्छे से नियमपूर्वक करना चाहिए। यह मनुष्य के सभ्य और हिन्दू होने की निशानी है। उक्त संस्कारों को वैदिक नियमों के द्वारा ही संपन्न किया जाना चाहिए।
9.पाठ करने के बारे में :
वेदो, उपनिषद या गीता का पाठ करना या सुनना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है। उपनिषद और गीता का स्वयंम अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है, लेकिन किसी बहसकर्ता या भ्रमित व्यक्ति के समक्ष वेद वचनों को कहना निषेध माना जाता है। प्रतिदिन धर्म ग्रंथों का कुछ पाठ करने से देव शक्तियों की कृपा मिलती है। हिन्दू धर्म में वेद, उपनिषद और गीता के पाठ करने की परंपरा प्राचीनकाल से रही है। वक्त बदला तो लोगों ने पुराणों में उल्लेखित कथा की परंपरा शुरू कर दी, जबकि वेदपाठ और गीता पाठ का अधिक महत्व है।
10.धर्म, कर्म और सेवा के बारे में :
धर्म-कर्म और सेवा का अर्थ यह कि हम ऐसा कार्य करें जिससे हमारे मन और मस्तिष्क को शांति मिले और हम मोक्ष का द्वार खोल पाएं। साथ ही जिससे हमारे सामाजिक और राष्ट्रिय हित भी साधे जाते हों। अर्थात ऐसा कार्य जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र और स्वयं को लाभ मिले। धर्म-कर्म को कई तरीके से साधा जा सकता है, जैसे- 1.व्रत, 2.सेवा, 3.दान, 4.यज्ञ, 5.प्रायश्चित, दीक्षा देना और मंदिर जाना आदि।
सेव का मतलब यह कि सर्व प्रथम माता-पिता, फिर बहन-बेटी, फिर भाई-बांधु की किसी भी प्रकार से सहायता करना ही धार्मिक सेवा है। इसके बाद अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना पुण्य का कार्य माना गया है। इसके अलवा सभी प्राणियों, पक्षियों, गाय, कुत्ते, कौए, चींटी आति को अन्न जल देना। यह सभी यज्ञ कर्म में आते हैं।
11.दान के बारे में :
दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियां खुलती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। देव आराधना का दान सबसे सरल और उत्तम उपाय है। वेदों में तीन प्रकार के दाता कहे गए हैं- 1.उक्तम, 2.मध्यम और 3.निकृष्ट। धर्म की उन्नति रूप सत्यविद्या के लिए जो देता है वह उत्तम। कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो देता है तो वह मध्यम और जो वेश्यागमनादि, भांड, भाटे, पंडे को देता वह निकृष्ट माना गया है। पुराणों में अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है, यही पुण्य भी है।
12.यज्ञ के बारे में :
यज्ञ के प्रमुख पांच प्रकार हैं- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ और अतिथि यज्ञ। यज्ञ पालन से ऋषि ऋण, देव ऋण, पितृ ऋण, धर्म ऋण, प्रकृति ऋण और मातृ ऋण समाप्त होता है। नित्य संध्या वंदन, स्वाध्याय तथा वेदपाठ करने से ब्रह्म यज्ञ संपन्न होता है। देवयज्ञ सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म से सम्पन्न होता है। अग्नि जलाकर होम करना अग्निहोत्र यज्ञ है। पितृयज्ञ को श्राद्धकर्म भी कहा गया है। यह यज्ञ पिंडदान, तर्पण और सन्तानोत्पत्ति से सम्पन्न होता है। वैश्वदेव यज्ञ को भूत यज्ञ भी कहते हैं। सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्त्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूत यज्ञ कहलाता है। अतितिथ यज्ञ से अर्थ मेहमानों की सेवा करना। अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। इसके अलावा अग्निहोत्र, अश्वमेध, वाजपेय, सोमयज्ञ, राजसूय और अग्निचयन का वर्णण यजुर्वेद में मिलता है।
13.मंदिर जाने के बारे में :
प्रति गुरुवार को मंदिर जाना चाहिए: घर में मंदिर नहीं होना चाहिए। प्रति गुरुवार को मंदिर जाना चाहिए। मंदिर में जाकर परिक्रमा करना चाहिए। भारत में मंदिरों, तीर्थों और यज्ञादि की परिक्रमा का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। मंदिर की 7 बार (सप्तपदी) परिक्रमा करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह 7 परिक्रमा विवाह के समय अग्नि के समक्ष भी की जाती है। इसी प्रदक्षिण को इस्लाम धर्म ने परंपरा से अपनाया जिसे तवाफ कहते हैं। प्रदक्षिणा षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। प्रदक्षिणा की प्रथा अतिप्राचीन है। हिन्दू सहित जैन, बौद्ध और सिख धर्म में भी परिक्रमा का महत्व है। इस्लाम में मक्का स्थित काबा की 7 परिक्रमा का प्रचलन है। पूजा-पाठ, तीर्थ परिक्रमा, यज्ञादि पवित्र कर्म के दौरान बिना सिले सफेद या पीत वस्त्र पहनने की परंपरा भी प्राचीनकाल से हिन्दुओं में प्रचलित रही है। मंदिर जाने या संध्यावंदन के पूर्व आचमन या शुद्धि करना जरूरी है। इसे इस्लाम में वुजू कहा जाता है।
14.संध्यावंदनके बारे में :
संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। मंदिर में जाकर संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। वैसे संधि आठ वक्त की मानी गई है। उसमें भी पांच महत्वपूर्ण है। पांच में से भी सूर्य उदय और अस्त अर्थात दो वक्त की संधि महत्वपूर्ण है। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। संध्योपासना के चार प्रकार है- 1.प्रार्थना, 2.ध्यान, 3.कीर्तन और 4.पूजा-आरती। व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है।
15..धर्म की सेवा के बारे में :
धर्म की प्रशंसा करना और धर्म के बारे में सही जानकारी को लोगों तक पहुंचाना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य होता है। धर्म प्रचार में वेद, उपनिषद और गीता के ज्ञान का प्रचार करना ही उत्तम माना गया है। धर्म प्रचारकों के कुछ प्रकार हैं। हिन्दू धर्म को पढ़ना और समझना जरूरी है। हिन्दू धर्म को समझकर ही उसका प्रचार और प्रसार करना जरूरी है। धर्म का सही ज्ञान होगा, तभी उस ज्ञान को दूसरे को बताना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को धर्म प्रचारक होना जरूरी है। इसके लिए भगवा वस्त्र धारण करने या संन्यासी होने की जरूरत नहीं। स्वयं के धर्म की तारीफ करना और बुराइयों को नहीं सुनना ही धर्म की सच्ची सेवा है।
16.मंत्र के बारे में :
वेदों में बहुत सारे मंत्रों का उल्लेख मिलता है, लेकिन जपने के लिए सिर्फ प्रणव और गायत्री मंत्र ही कहा गया है बाकी मंत्र किसी विशेष अनुष्ठान और धार्मिक कार्यों के लिए है। वेदों में गायत्री नाम से छंद है जिसमें हजारों मंत्र है किंतु प्रथम मंत्र को ही गायत्री मंत्र माना जाता है। उक्त मंत्र के अलावा किसी अन्य मंत्र का जाप करते रहने से समय और ऊर्जा की बर्बादी है। गायत्री मंत्र की महिमा सर्वविदित है। दूसरा मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र, लेकिन उक्त मंत्र के जप और नियम कठिन है इसे किसी जानकार से पूछकर ही जपना चाहिए।
17.प्रायश्चित के बार में :-
प्राचीनकाल से ही हिन्दु्ओं में मंदिर में जाकर अपने पापों के लिए प्रायश्चित करने की परंपरा रही है। प्रायश्चित करने के महत्व को स्मृति और पुराणों में विस्तार से समझाया गया है। गुरु और शिष्य परंपरा में गुरु अपने शिष्य को प्रायश्चित करने के अलग-अलग तरीके बताते हैं। दुष्कर्म के लिए प्रायश्चित करना , तपस्या का एक दूसरा रूप है। यह मंदिर में देवता के समक्ष 108 बार साष्टांग प्रणाम , मंदिर के इर्दगिर्द चलते हुए साष्टांग प्रणाम और कावडी अर्थात वह तपस्या जो भगवान मुरुगन को अर्पित की जाती है, जैसे कृत्यों के माध्यम से की जाती है। मूलत: अपने पापों की क्षमा भगवान शिव और वरूणदेव से मांगी जाती है, क्योंकि क्षमा का अधिकार उनको ही है।
18.दीक्षा देने के बारे में :
दीक्षा देने का प्रचलन वैदिक ऋषियों ने प्रारंभ किया था। प्राचीनकाल में पहले शिष्य और ब्राह्मण बनाने के लिए दीक्षा दी जाती थी। माता-पिता अपने बच्चों को जब शिक्षा के लिए भेजते थे तब भी दीक्षा दी जाती थी। हिन्दू धर्मानुसार दिशाहीन जीवन को दिशा देना ही दीक्षा है। दीक्षा एक शपथ, एक अनुबंध और एक संकल्प है। दीक्षा के बाद व्यक्ति द्विज बन जाता है। द्विज का अर्थ दूसरा जन्म। दूसरा व्यक्तित्व। सिख धर्म में इसे अमृत संचार कहते हैं।
यह दीक्षा देने की परंपरा जैन धर्म में भी प्राचीनकाल से रही है, हालांकि दूसरे धर्मों में दीक्षा को अपने धर्म में धर्मांतरित करने के लिए प्रयुक्त किया जाने लगा। धर्म से इस परंपरा को ईसाई धर्म ने अपनाया जिसे वे बपस्तिमा कहते हैं। अलग-अलग धर्मों में दीक्षा देने के भिन्न-भिन्न तरीके हैं।
जिनका आज जन्मदिन है उनको हार्दिक शुभकामनाएं बधाई और शुभ आशीष
दिनांक 15 को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 6 होगा। आपमें गजब का आत्मविश्वास है। इसी आत्मविश्वास के कारण आप किसी भी परिस्थिति में डगमगाते नहीं है। आपको सुगंध का शौक होगा। इस अंक से प्रभावित व्यक्ति आकर्षक, विनोदी, कलाप्रेमी होते हैं। आप अपनी महत्वाकांक्षा के प्रति गंभीर होते हैं। 6 मूलांक शुक्र ग्रह द्वारा संचालित होता है। अत: शुक्र से प्रभावित बुराई भी आपमें पाई जा सकती है। जैसे स्त्री जाति के प्रति आपमें सहज झुकाव होगा। अगर आप स्त्री हैं तो पुरुषों के प्रति आपकी दिलचस्पी होगी। लेकिन आप दिल के बुरे नहीं है।
शुभ दिनांक : 6, 15, 24
शुभ अंक : 6, 15, 24, 33, 42, 51, 69, 78
शुभ वर्ष : 2026
ईष्टदेव : मां सरस्वती, महालक्ष्मी
शुभ रंग : क्रीम, सफेद, लाल, बैंगनी
जन्मतिथि के अनुसार भविष्यफल :
नौकरीपेशा व्यक्ति अपने परिश्रम के बल पर उन्नति के हकदार होंगे। बैक परीक्षाओं में भी सफलता अर्जित करेंगे। दाम्पत्य जीवन में मिली जुली स्थिति रहेगी। आर्थिक मामलों में सभंलकर चलना होगा। लेखन संबंधी मामलों के लिए उत्तम होती है। जो विद्यार्थी सीए की परीक्षा देंगे उनके लिए शुभ रहेगा। व्यापार-व्यवसाय में भी सफलता रहेगी। विवाह के योग भी बनेंगे। स्त्री पक्ष का सहयोग मिलने से प्रसन्नता रहेगी।
मेष दैनिक राशिफल (Aries Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए चिंता ग्रस्त रहने वाला है। आप अपने अटके कामों को पूरा करने की कोशिश करेंगे। व्यवसाय में आपको अकस्मात लाभ मिलने की संभावना है। आप अपने सामाजिक कामों पर पूरा ध्यान देंगे। आपके घर में लड़ाई झगड़े बढ़ेंगे, जिनके लिए आपको अपने पिताजी से बातचीत करनी होगी। संतान ने यदि किसी प्रतियोगिता में भाग लिया था, तो उसमें उन्हें अच्छी सफलता हासिल होगी। आपको अपने कामों को लेकर किसी पर डिपेंड नहीं रहना है।
वृषभ दैनिक राशिफल (Taurus Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए सामाजिक व राजनीतिक कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने के लिए रहेगा। शौक मौज की चीजों में आपकी काफी रुचि रहेगी। आप किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं। आपको किसी प्रॉपर्टी से संबंधित काम में सफलता हासिल होगी। परिवार के सदस्य आपका पूरा साथ देंगे। आप कामों को लेकर टेंशन में लगे रहेंगे, जिसमें आप अच्छा खासा इन्वेस्टमेंट भी कर सकते हैं। आपके कुछ नए विरोधी आपको परेशान करने की कोशिश कर सकते हैं।
मिथुन दैनिक राशिफल (Gemini Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए रचनात्मक कार्यों से जुड़कर नाम कमाने के लिए रहेगा। कारोबार में आपको अच्छे सफलता हासिल होगी। आप बच्चों के साथ कुछ समय मौज मस्ती करने में व्यतीत करेंगे। आप अपने कामों में यदि कोई बदलाव करेंगे, तो वह आपके लिए अच्छे रहेंगे। भाई व बहनों से चल रही अनबन बातचीत के जरिए दूर होगी। राजनीति में कार्यरत लोगों को किसी बड़े नेता से मिलने का मौका मिलेगा। आप अपने बॉस की बातों पर पूरा ध्यान दें।
कर्क दैनिक राशिफल (Cancer Daily Horoscope)
आज का दिन प्रेम जीवन जी रहे लोगों के लिए अच्छा रहने वाला है। आप अपने किसी काम को पूरा करने में पूरी मेहनत करेंगे। आपकी कोई मन की इच्छा पूरी होने से आपका मन परेशान रहेगा। आप किसी दूसरे के मामले में बेवजह ना बोले, नहीं तो आपकी समस्याएं बढ़ेंगी। आपको किसी पुराने मित्र से लंबे समय बाद मिलने का मौका मिलेगा, जिसमें आप पुराने गिले शिकवे न उखाड़ें। मामा पक्ष से आपको धन लाभ मिलता दिख रहा है। जीवन साथी से आप कोई लड़ाई झगड़ा न उखाड़ें।
सिंह दैनिक राशिफल (Leo Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए व्यस्त रहने वाला है। आपको बेवजह के काम रहने से आप परेशान रहेंगे, लेकिन आपको अपनी बुद्धि का प्रयोग करके कामों को करना होगा। आपको कार्यक्षेत्र में कोई बहलाने फुसलाने की कोशिश कर सकता है। आपको किसी काम को लेकर लापरवाही बिल्कुल नहीं करनी है। विद्यार्थियों की किसी नए काम को करने की इच्छा जागृत हो सकती है। आपको अपने किसी सहयोगी से कोई बात कहने का मौका मिलेगा।
कन्या दैनिक राशिफल (Virgo Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए बढ़िया रहने वाला है। परिवार में किसी मांगलिक कार्यक्रम की तैयारी शुरू हो सकती हैं। भाई व बहन आपके कामों में पूरा साथ देंगे। आपको लेनदेन से संबंधित मामलों पर पूरा ध्यान देना होगा। आपको खर्चों में लापरवाही बिल्कुल नहीं बरतनी है। संतान को तरक्की करते देख आपको खुशी होगी। पारिवारिक मुद्दों को आप मिल बैठकर सुलझाएंगे, तो आपके लिए बेहतर रहेगा। संतान पक्ष की ओर से आपको कोई खुशखबरी सुनने को मिलेगी।
तुला दैनिक राशिफल (Libra Daily Horoscope)
आज आपके लंबे समय से अटके हुए काम पूरे होंगे। किसी पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होने से माहौल खुशनुमा रहेगा। आपको जीवनसाथी का सहयोग व सानिध्य भरपूर मात्रा में मिलेगा। किसी जमीन जायदाद से संबंधित मामले को आप मिल बैठकर निपटाएंगे, तो बेहतर रहेगा। आपके घर किसी अतिथि का आगमन हो सकता है। आप अपने मन में किसी के प्रति ईर्ष्या द्धेष की भावना बनाएं रखें। आप अपनी अच्छी सोच का कार्यक्षेत्र में लाभ उठाएंगे। आपको किसी नई नौकरी का ऑफर आ सकता है।
वृश्चिक दैनिक राशिफल (Scorpio Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए मध्यम रूप से फलदायी रहने वाला है। पारिवारिक मुद्दों को आप सुलझाने की कोशिश में लगे रहेंगे। परिवार में सदस्यों में एकजुटता बनी रहेगी। आपको अपने किसी पुराने मित्र से लंबे समय तक मिलकर खुशी होगी। आपका बिजनेस पहले से बेहतर चलेगा। अविवाहित जातकों के जीवन में किसी नए मेहमान की दस्तक हो सकती है। आपको अपने पारिवारिक मामलों को मिल बैठकर निपटाने की आवश्यकता है। संतान पक्ष की ओर से आपको कोई खुशखबरी सुनने को मिल सकती है।
धनु दैनिक राशिफल (Sagittarius Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए सुखद परिणाम लेकर आएगा। ससुराल पक्ष से आपको धन लाभ मिलता दिख रहा है। आपके आत्म सम्मान में वृद्धि होने से खुशी होगी। व्यावसायिक योजना को गति मिलेगी। किसी पर आंख बंद करके भरोसा करना आपको नुकसान देगा। भगवान की भक्ति में आपका खूब मन लगेगा। आपको किसी यात्रा पर जाते समय वाहनों का प्रयोग सावधान रहकर करना होगा। आपकी कुछ नया करने की इच्छा जागृत हो सकती है।
मकर दैनिक राशिफल (Capricorn Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए अनुकूल रहने वाला है। सामाजिक कार्यक्रमों में आप बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे और आपके कुछ रुके हुए काम पूरे होंगे और आप किसी संपत्ति की खरीदने बेचने की योजना बना रहे थे, तो आपकी वह इच्छा भी आज पूरी होगी। किस पुराने मित्र से लंबे समय बाद मिलकर आपको खुशी होगी। आपको किसी पुरानी गलती से सबक लेना होगा। संतान पक्ष की ओर से आपको कोई खुशखबरी सुनने को मिल सकते हैं। विद्यार्थियों का बौद्धिक व मानसिक बोझ से छुटकारा मिलेगा।
कुंभ दैनिक राशिफल (Aquarius Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए लाभदायक रहने वाला है। आपको स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है और कार्यक्षेत्र में आपको कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती हैं। आप अपनी माताजी से कोई वादा करें, तो उसे आपको समय रहते पूरा करना होगा। आपकी बेवजह क्रोध करने की आदत के कारण परिवार के सदस्य भी आपसे नाराज रहेंगे। मौसम का विपरीत प्रभाव आपके स्वास्थ्य पर पड़ेगा, इसलिए आपको थोड़ा सतर्क रहना होगा।
मीन दैनिक राशिफल (Pisces Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए साहस व पराक्रम में वृद्धि लेकर आने वाला है। आपकी सुख सुविधाओं में वृद्धि होगी। आपका किसी नए वाहन की खरीदारी का सपना पूरा होगा। आपको किसी परिजन की ओर से कोई निराशाजनक सूचना सुनने को मिल सकती हैं। आपके शौक मौज की चीजों में इजाफा होगा। आपकी बेवजह बोलने की आदत आपके लिए समस्या खड़ी कर सकती हैं। आपको अपनी इनकम के सोर्स पर पूरा ध्यान देना होगा
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14 March 2025: Vaidik Panchang and Horoscope